मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले का मोरवा शहर भारत के कोयला उत्पादन क्षेत्र में एक ऐतिहासिक मोड़ का साक्षी बनने जा रहा है। यह संभवतः पहली बार होगा जब कोयला खनन के लिए एक पूरे शहर का अधिग्रहण किया जा रहा है। नॉर्दर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (NCL), जो कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी है, ने मोरवा शहर और आसपास के 10 गांवों को कोयला बेयरिंग एरियाज (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 1957 के तहत अधिग्रहित करने की योजना बनाई है।

927 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस शहर के नीचे लगभग 600 मिलियन टन से अधिक कोयले के भंडार होने का अनुमान है। यह विस्थापन प्रक्रिया न केवल भारत के कोयला खनन इतिहास में अद्वितीय है, बल्कि इससे लगभग 50,000 लोग प्रभावित होंगे और 22,000 से अधिक मकानों को ध्वस्त करना पड़ेगा। इस लेख में हम 2016 में लगाई गई धारा 4 की अधिसूचना से लेकर वर्तमान तक की पूरी कहानी को विस्तार से जानेंगे।

2015-2016: विस्थापन की शुरुआत और धारा 4 की अधिसूचना

प्रारंभिक घोषणाएं

2015 के अंत में स्थानीय मीडिया में पहली बार खबरें आईं कि मोरवा के वार्ड नंबर 10 और गोंड जनजाति के प्रभुत्व वाले 10 गांवों को कोयला खदानों के विस्तार के लिए अधिग्रहित किया जाएगा। प्रारंभिक योजना में शहर के बाहरी इलाकों में स्थित क्षेत्रों को प्रभावित करने और 400 परिवारों को विस्थापित करने का प्रस्ताव था।

4 मई 2016 की गजट अधिसूचना

4 मई 2016 को, कोयला मंत्रालय ने कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट की धारा 4 के तहत दो असाधारण गजट अधिसूचनाएं जारी कीं। इन अधिसूचनाओं के तहत 19.25 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को दो चरणों में अधिग्रहित करने का प्रस्ताव था। धारा 4 एक आपातकालीन प्रावधान है जो भूमि के तत्काल अधिग्रहण की अनुमति देता है और यह पूरे शहर को कवर करने वाला था।

यह अधिसूचना महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसने पूरे मोरवा शहर को अधिग्रहण के दायरे में ला दिया, न कि केवल बाहरी इलाकों को। यह निर्णय NCL की जयंत खदान के विस्तार की आवश्यकता से प्रेरित था। NCL ने अपने उत्तर में बताया कि मोरवा की भूमि को 1960 में कोयला युक्त क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया था।

स्थानीय विरोध और आपत्तियां (2016-2017) निवासियों का प्रतिरोध

धारा 4 की अधिसूचना के बाद, मोरवा के निवासियों ने अधिग्रहण का विरोध किया। उन्होंने दावा किया कि अधिग्रहण नोटिस कई कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन करता है। कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट के अनुसार, निवासियों को नोटिस की तारीख से 90 दिनों के भीतर अपनी आपत्तियां दर्ज करने का अधिकार है।

स्थानीय संगठनों ने जून 2016 में NCL को पत्र भेजा, लेकिन NCL अधिकारियों ने उनसे बातचीत करने से मना कर दिया। निवासी अंततः 15 अगस्त को सिंगरौली के जिला कलेक्टर के पास पहुंचे। हालांकि आपत्तियां दर्ज करने की तारीख बीत चुकी थी, कलेक्टर ने एक अपवाद की अनुमति दी।

NCL का जवाब

इसके जवाब में, NCL ने 10 सितंबर 2016 को एक उत्तर जारी किया। पत्र में कहा गया कि मोरवा की भूमि को 1960 में कोयला युक्त क्षेत्र के रूप में चिन्हित किया गया था और NCL के कोयला उत्पादन लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इसकी आवश्यकता थी। पत्र में आश्वासन दिया गया कि खनन से प्रभावित लोगों को कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट के तहत पर्याप्त मुआवजा दिया जाएगा।

मुआवजे की चुनौतियां और कानूनी मुद्दे: कम मुआवजे की समस्या

मोरवा और आसपास के निवासियों को मुआवजा देने की प्रक्रिया जटिल थी। केवल वे लोग जिनके पास पट्टे या पंजीकृत भूमि थी, वे मुआवजे के पात्र थे, जिससे अन्य लोग बाहर रह गए। कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट के तहत मुआवजे की दरें 2014 में पारित भूमि अधिग्रहण (राहत और पुनर्वास) अधिनियम (LARR) की तुलना में पांच गुना कम थीं।

आदिवासी समुदाय की चिंताएं

गोंड आदिवासी और दिहाड़ी मजदूरों को सबसे बड़ी समस्या अपनी भूमि को पट्टे में बदलने की थी। पटवारी एक हेक्टेयर भूमि को बदलने के लिए 20,000 रुपये मांग रहे थे। हालांकि वे वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अपने अधिकारों को जानते थे, लेकिन उन्हें स्थानीय समर्थन नहीं मिल सका। विशेषज्ञों ने बताया कि इस मामले में FRA लागू नहीं हो सकता क्योंकि अधिग्रहण मौजूदा खदानों के विस्तार के लिए था, न कि नई खदानों की खुदाई के लिए।

2016 के बाद की स्थिति और धारा 4 का निलंबन

2016 की धारा 4 अधिसूचना के बाद के वर्षों में, स्थानीय विरोध और कानूनी जटिलताओं के कारण, अधिग्रहण प्रक्रिया में देरी हुई। समाचार स्रोतों में धारा 4 को औपचारिक रूप से रद्द करने की विशिष्ट तारीख का स्पष्ट उल्लेख नहीं है, लेकिन यह स्पष्ट है कि 2016 की अधिसूचना के बाद की अवधि में प्रक्रिया स्थगित रही।

स्थानीय लोगों ने कहा, "इस शहर को बनाने में हमें 50 साल लगे और जल्द ही, यह बर्बाद हो जाएगा। किस तरह का मुआवजा उपयुक्त होगा, यह समझना मुश्किल है।"

सितंबर 2020: धारा 4 की पुनः अधिसूचना

सितंबर 2020 में, NCL ने फिर से मोरवा के अधिग्रहण के लिए कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट की धारा 4 के तहत अधिसूचना जारी की। यह दूसरी बार था जब इस प्रावधान को लागू किया गया। इस बार की अधिसूचना अधिक व्यापक थी और इसमें पूरे शहर को शामिल किया गया था।

2020 की अधिसूचना के समय तक, यह स्पष्ट हो गया था कि मोरवा के नीचे 600 मिलियन टन से अधिक कोयले के विशाल भंडार हैं, और केंद्र सरकार ने NCL को खनन के लिए अनुमति दे दी थी। इस बार NCL ने अधिक संगठित तरीके से योजना बनाना शुरू किया और स्थानीय लोगों के साथ संवाद की प्रक्रिया आरंभ की।

2021-2023: योजना और परामर्श का दौर एवं निरंतर वार्ता

2020 की अधिसूचना के बाद, NCL ने स्थानीय लोगों के साथ नियमित रूप से पुनर्वास और पुनर्स्थापन पर बातचीत शुरू की। छह महीनों से अधिक समय तक, NCL अधिकारियों ने निवासियों के साथ मुआवजे और पुनर्वास की शर्तों पर चर्चा की।

मुआवजे के मानदंड का निर्धारण

NCL ने बताया कि पिछले वितरण, अनिवार्य प्रावधानों, इन क्षेत्रों में रहने वाले लोगों द्वारा लिए गए निर्णय और क्षेत्र में आने वाले निजी वाणिज्यिक कोयला ब्लॉकों द्वारा दिए जा रहे मुआवजे के आधार पर, वे एक आम सहमति पर पहुंचने में सक्षम हुए। मुआवजे और पुनर्वास के सभी मापदंड तय किए गए।

विस्थापन की आवश्यकता

NCL के चेयरमैन एंड मैनेजिंग डायरेक्टर बी सईराम ने बताया कि टाउनशिप का स्थानांतरण इसलिए आवश्यक है क्योंकि इसकी एक कोयला खदान - जयंत ब्लॉक - इस टाउनशिप के करीब बढ़ रही है और अगले दो वर्षों में यह आवासीय क्षेत्र के 500 मीटर तक पहुंच जाएगी, जो खनन संचालन में बाधा डालेगा।

2024: पुनर्वास योजना का औपचारिकीकरण नवंबर 2024: बड़ी घोषणा

नवंबर 2024 में, NCL ने आधिकारिक रूप से घोषणा की कि वह सिंगरौली, मध्य प्रदेश में मोरवा टाउनशिप से निवासियों को स्थानांतरित करने के लिए एक विशाल पुनर्वास और पुनर्स्थापन परियोजना की योजना बना रहा है। 927 हेक्टेयर में फैला यह क्षेत्र 600 मिलियन टन से अधिक खनन योग्य कोयले के ऊपर स्थित है।

परियोजना का विस्तार

कुल क्षेत्र जिसके लिए स्थानांतरण की योजना बनाई जा रही है वह 927 हेक्टेयर है, जिसमें शामिल हैं:

205.8 हेक्टेयर वन भूमि
572.5 हेक्टेयर किरायेदारी भूमि
149.3 हेक्टेयर सरकारी भूमि

दिसंबर 2024: वित्तीय योजना

दिसंबर 2024 में, NCL ने 24,000 करोड़ रुपये की पुनर्वास और पुनर्स्थापन परियोजना शुरू करने की घोषणा की। इस परियोजना से लगभग 50,000 निवासियों और 22,500 घरों का स्थानांतरण होगा।

वर्तमान में, NCL भूमि अधिग्रहण से संबंधित मुद्दों को सुलझाने पर काम कर रहा है, जिसकी लागत लगभग 4,000 करोड़ रुपये होगी। पुनर्वास व्यय की वसूली के लिए, NCL मई से कोयले की बिक्री पर प्रति टन 300 रुपये का अतिरिक्त शुल्क लगाएगा, जिससे सालाना 4,200 करोड़ रुपये जुटाने का लक्ष्य है।

NCL के CMD बी सईराम ने बताया कि जिला प्रशासन इस पर NCL की मदद कर रहा है और पुनर्वास के पहले चरण के विवरण को तैयार करने की आवश्यकता है। मई 2025 से पहला मुआवजा चेक सौंपना शुरू होगा। पहले चरण में 572.5 हेक्टेयर की किरायेदारी भूमि को खाली करना है।

विस्थापन का प्रभाव और आकार ध्वस्त होने वाली संपत्तियां

मोरवा विस्थापन से निम्नलिखित को ध्वस्त किया जाएगा:

22,000 से अधिक इमारतें
चार बड़े कॉलेज
20 से अधिक बड़े स्कूल
5,000 से अधिक छोटे-बड़े दुकानें
कई बड़े अस्पताल
कुल 1,485 हेक्टेयर भूमि का अधिग्रहण

वित्तीय प्रभाव

पूरी प्रक्रिया पर लगभग 24,000 से 30,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। भूमि अधिग्रहण की लागत लगभग 4,000 करोड़ रुपये अनुमानित है। परियोजना का उद्देश्य 2026-27 तक जयंत खदान की क्षमता को 30 मिलियन टन प्रति वर्ष से 35 मिलियन टन प्रति वर्ष तक बढ़ाना है। इस परियोजना से लगभग 30,000 परिवार प्रभावित होंगे। लगभग 50,000 लोगों को विस्थापित किया जाएगा।

स्थानीय लोगों की प्रतिक्रिया और भावनाएं: मिश्रित भावनाएं

सिंगरौली (मोरवा) के स्थानीय लोगों ने कहा कि मोरवा वासियों ने राष्ट्र हित में इस फैसले का सहयोग किया है। एक निवासी ने कहा, "हमें इस विस्थापन को सोचकर डर लगता है कि यहां हमारी पीढ़ियां बीत गईं। यहां हमने बचपन से लेकर जवानी इसी जगह बिता दी और जब बुढ़ापा का समय आ रहा है तो हमारा विस्थापन होने जा रहा है यह सोच कर भी भयावह लगता है।"

चिंताएं और आशंकाएं

स्थानीय लोगों ने कहा, "इससे हमें फिर 50 वर्ष पीछे जैसे हालात हो जाएंगे और फिर से यहां पहुंचने में हमें कई वर्ष लग जाएंगे तो इस विस्थापन को सोचकर भी डर लगता है लेकिन देश हित में कोयले का खनन होना भी जरूरी है इसलिए मोरवावासी इस विस्थापन का समर्थन कर रहे हैं।"

हालांकि, लोगों ने यह भी चिंता व्यक्त की कि NCL के पास विस्थापितों के लिए कोई ब्लू प्रिंट नहीं है कोई योजना नहीं है इससे मोरवा वासी और भी डरे हुए हैं।

कानूनी और नीतिगत ढांचा कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट, 1957

मोरवा का अधिग्रहण कोयला बेयरिंग एरियाज (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 1957 के तहत किया जा रहा है। यह अधिनियम कोयला युक्त या कोयला युक्त होने की संभावना वाली भूमि के अधिग्रहण के लिए प्रावधान करता है।

धारा 4 एक आपातकालीन प्रावधान है जो भूमि के तत्काल अधिग्रहण की अनुमति देता है। इस धारा के तहत जारी अधिसूचना के बाद, निवासियों को 90 दिनों के भीतर अपनी आपत्तियां दर्ज करने का अधिकार है।

2022 की नीति दिशानिर्देश

13 अप्रैल 2022 को केंद्रीय कैबिनेट की मंजूरी के साथ, कोयला मंत्रालय ने 22 अप्रैल 2022 को कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट, 1957 के तहत अधिग्रहित भूमि को पट्टे पर देने के लिए नीति दिशानिर्देश जारी किए यह नीति उन भूमियों के उपयोग के लिए स्पष्ट नीतिगत ढांचा प्रदान करती है जो खनन समाप्त हो चुकी हैं या कोयला खनन के लिए व्यावहारिक रूप से अनुपयुक्त हैं। इसमें परियोजना प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए भी प्रावधान हैं।

मध्य प्रदेश सरकार ने थर्मल पावर प्लांटों में एक ट्रिलियन रुपये का निवेश करने का निर्णय लिया है। 2017 तक, सिंगरौली अकेले राष्ट्रीय ग्रिड को लगभग 35,000 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने की उम्मीद थी।

सिंगरौली भारत की ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है और यहां प्रचुर मात्रा में पावर ग्रेड कोयले के भंडार हैं। यह क्षेत्र भारत के ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। NCL देश में उत्पादित कुल कोयले का 14 प्रतिशत उत्पादन करता है, जो देश की कुल बिजली उत्पादन में 10 प्रतिशत का योगदान देता है।

राष्ट्रीय संदर्भ में सिंगरौली का महत्व ऊर्जा उत्पादन का केंद्र

मध्य प्रदेश सरकार ने थर्मल पावर प्लांटों में एक ट्रिलियन रुपये का निवेश करने का निर्णय लिया है। 2017 तक, सिंगरौली अकेले राष्ट्रीय ग्रिड को लगभग 35,000 मेगावाट बिजली की आपूर्ति करने की उम्मीद थी।

सिंगरौली भारत की ऊर्जा राजधानी के रूप में जाना जाता है और यहां प्रचुर मात्रा में पावर ग्रेड कोयले के भंडार हैं। यह क्षेत्र भारत के ऊर्जा सुरक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। NCL देश में उत्पादित कुल कोयले का 14 प्रतिशत उत्पादन करता है, जो देश की कुल बिजली उत्पादन में 10 प्रतिशत का योगदान देता है।

कोयला भंडार

मोरवा के नीचे 600 मिलियन टन से अधिक कोयला होने का अनुमान है। यह विशाल भंडार देश की ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकता है।

NCL सिंगरौली मुख्यालय से संचालित होता है और मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के सिंगरौली और सोनभद्र जिलों में फैले 10 मशीनीकृत ओपनकास्ट खदानों के माध्यम से काम करता है।

समान मामलों से तुलना और ऐतिहासिक संदर्भ: अनूठा विस्थापन

यह संभवतः पहली बार है जब खनन विकास के लिए एक पूरे शहर को नष्ट किया जा रहा है। कोयला बेयरिंग एरियाज (एक्विजिशन एंड डेवलपमेंट) एक्ट, 1957 ने मोरवा को नक्शे से मिटाने की धमकी दी है।

यह अधिनियम क्षेत्र में सभी बातचीत का केंद्र बिंदु बन गया है, चाहे वे होटलकर्मी और सब्जी विक्रेता हों या शहर के बाहरी इलाके में रहने वाले आदिवासी हों।

सिंगरौली का विस्थापन इतिहास

सिंगरौली में हजारों लोगों को औद्योगिक और बुनियादी ढांचे के विकास के कारण बार-बार विस्थापन का सामना करना पड़ा है। शहर 1950 के दशक में विकसित हुआ जब क्षेत्र में तेजी से औद्योगिक विकास ने हजारों लोगों को विस्थापित किया। वे मोरवा के आठ गांवों में आए और धीरे-धीरे यह क्षेत्र 11 नगरपालिका वार्डों और 50,000 की आबादी के साथ एक हलचल भरे टाउनशिप में बदल गया।

1973 में, स्पेशल अथॉरिटी डेवलपमेंट एरिया, एक नगरपालिका निगम निकाय, सिंगरौली में भविष्य की परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण को विनियमित करने के लिए स्थापित किया गया था।

1977 में, विश्व बैंक ने नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन को क्षेत्र में पहले कोयला-आधारित बिजली संयंत्र के निर्माण के लिए 150 मिलियन अमेरिकी डॉलर का ऋण दिया। रिहंद बांध द्वारा पहले से ही विस्थापित लगभग 600 परिवारों को मोरवा जाने के लिए मजबूर होना पड़ा।

1985 में, NCL की दुधीचुआ कोयला खदान ने लगभग 378 लोगों को विस्थापित किया, जिनमें अधिकतर आदिवासी थे।

2006 से, दैनिक भास्कर, एस्सार, हिंडाल्को, जेपी और रिलायंस द्वारा पांच सुपर थर्मल पावर परियोजनाएं शुरू की गईं। लगभग 4,047 हेक्टेयर भूमि खदानों और बिजली संयंत्रों के लिए अधिग्रहित की गई, जिससे सिंगरौली में 3,000 से अधिक परिवार विस्थापित हुए।

प्रमुख चुनौतियाँ

भूमि स्वामित्व का प्रमाण - केवल वे लोग जिनके पास पट्टे या पंजीकृत भूमि है, वे मुआवजे के पात्र हैं। कई आदिवासी परिवारों के पास औपचारिक स्वामित्व दस्तावेज नहीं हैं।

कम मुआवजा - कोयला बेयरिंग एरियाज एक्ट के तहत मुआवजा LARR अधिनियम की तुलना में काफी कम है।

पुनर्वास की योजना - स्थानीय लोगों की चिंता थी कि NCL के पास विस्थापितों के लिए कोई स्पष्ट ब्लू प्रिंट नहीं है।

सामाजिक-सांस्कृतिक प्रभाव - 50 साल से अधिक पुराने शहर को छोड़ना भावनात्मक रूप से कठिन है।

भविष्य की योजनाएं और समयरेखा 2025-2026 की समयरेखा

2025 अंत तक - पहले मुआवजे के चेक का वितरण शुरू

2025-2026 - पहले चरण में 572.5 हेक्टेयर किरायेदारी भूमि को खाली करना

2026-27 - जयंत खदान की क्षमता को 30 मिलियन टन प्रति वर्ष से 35 मिलियन टन प्रति वर्ष तक बढ़ाना

अगले 2 वर्ष - जयंत ब्लॉक खदान आवासीय क्षेत्र के 500 मीटर तक पहुंचने की संभावना

दीर्घकालिक लक्ष्य

NCL का उद्देश्य पूरे मोरवा शहर और आसपास के क्षेत्रों को चरणबद्ध तरीके से विस्थापित करना है, जिससे जयंत खदान से अधिकतम कोयला उत्पादन हो सके। यह परियोजना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव पर्यावरणीय मुद्दे

205.8 हेक्टेयर वन भूमि का अधिग्रहण किया जाएगा। इससे स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव पड़ेगा, हालांकि NCL को पर्यावरणीय मंजूरी और वन मंजूरी प्राप्त करनी होगी।

सामाजिक प्रभाव

शैक्षणिक संस्थानों (4 कॉलेज, 20+ स्कूल), अस्पतालों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों (5,000+ दुकानें) के विनाश से सामाजिक बुनियादी ढांचे पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

स्थानीय समुदाय जो पीढ़ियों से यहां बसे हैं, उन्हें नए स्थानों पर अनुकूलन करना होगा, जो सामाजिक-सांस्कृतिक चुनौतियां पैदा करेगा।

निष्कर्ष

मोरवा सिंगरौली विस्थापन की कहानी भारत के विकास की दुविधा को दर्शाती है - ऊर्जा सुरक्षा की आवश्यकता और स्थानीय समुदायों के अधिकारों और भावनाओं के बीच संतुलन। 2016 में पहली बार धारा 4 की अधिसूचना जारी होने से लेकर सितंबर 2020 में इसकी पुनः अधिसूचना और फिर 2024-25 में व्यापक पुनर्वास योजना के क्रियान्वयन तक, यह प्रक्रिया लंबी और जटिल रही है।

स्थानीय लोगों ने प्रारंभिक विरोध के बावजूद, राष्ट्रहित में इस विस्थापन को स्वीकार किया है, हालांकि उनकी चिंताएं और भय वैध हैं। NCL ने 24,000-30,000 करोड़ रुपये के व्यापक पुनर्वास पैकेज के साथ इन चिंताओं को दूर करने का प्रयास किया है, लेकिन सफलता इसके क्रियान्वयन पर निर्भर करेगी।

मोरवा का विस्थापन न केवल भारत के कोयला खनन इतिहास में एक अभूतपूर्व घटना है, बल्कि यह भविष्य में इसी तरह की परियोजनाओं के लिए एक मिसाल भी कायम करेगा। यह महत्वपूर्ण है कि सभी हितधारक - सरकार, NCL और स्थानीय समुदाय - मिलकर यह सुनिश्चित करें कि विस्थापन सम्मानजनक, न्यायसंगत और प्रभावी तरीके से हो, ताकि प्रभावित लोग बेहतर जीवन शुरू कर सकें।

आने वाले महीने और वर्ष महत्वपूर्ण होंगे क्योंकि 2025 अंत तक मुआवजे का वितरण शुरू होने वाला है और पूरी प्रक्रिया को पारदर्शिता और करुणा के साथ संचालित करने की आवश्यकता होगी। मोरवा की कहानी यह याद दिलाती है कि विकास की कीमत अक्सर उन लोगों द्वारा चुकाई जाती है जिनकी आवाज सबसे कम सुनी जाती है, और यह हमारा सामूहिक दायित्व है कि हम यह सुनिश्चित करें कि यह कीमत न्यायसंगत हो।